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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Saturday 6 October 2012

क्या हम मजबूर हैं


क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपना बहाना बना लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
दूसरों के नजर में अच्छा 
बनने का रास्ता बना लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
काम से बचने का जरिया बना लिया हैं
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपना दिखावा बना लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपनी नाकामी का नाम दे दिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपनी साधनों का अभाव मान लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपना बहाना बना लिया हैं 

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