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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 25 March 2012

मुझे कुछ नहीं चाहिए

मुझे कुछ नहीं चाहिए, सिवाए माँ के दुलार के
मुझे तो बस बाबूजी का प्यार चाहिए
मुझे कुछ नहीं चाहिए ,सिवाए माँ के आशीर्वाद के
मुझे तो बस बाबूजी का साथ चाहिए
मुझे कुछ नहीं चाहिए , सिवाए माँ के ममता के
मुझे तो बस बाबूजी का स्नेह चाहिए
मुझे कुछ नहीं चाहिए ,सिवाए माँ के अरमान के
मुझे तो बस बाबूजी का सम्मान चाहिए
मुझे कुछ नहीं चाहिए,सिवाए माँ के सुख के
मुझे तो बस बाबूजी की ख़ुशी चाहिए
मुझे कुछ नहीं चाहिए, सिवाए माँ के दुलार के
मुझे तो बस बाबूजी का प्यार चाहिए

अगर मैं होता

अगर मैं जीवन होता ,तो चैन से जीने देता
 गर मौत होता तो ,जीने का अवसर देता
अगर मैं रौशनी होता ,तो हर एक को प्रकाश देता
गर अंधकार होता ,तो कही दूर होता
अगर मैं दिन होता , तो रात की प्रतीक्षा करता
गर रात होता , तो प्रातः की तैयारी करता
अगर मैं बरसात होता , तो सावन में ही बरसता
गर सावन होता , तो हरियाली बिखेर देता
अगर मैं अमीर होता, तो गरीबी दूर करता 
गर गरीब होता , तो संतोष के साथ जीता
अगर मैं जीवन होता ,तो चैन से जीने देता
गर मौत होता तो ,जीने का अवसर देता

Saturday 24 March 2012

मेरा दर्द कोई लेता नहीं

मेरा दर्द कोई लेता नहीं
प्यार मुझे कोई देता नहीं
दोस्त तो बन जाते हैं सभी
साथ मगर कोई देता नहीं
कहते तो सभी हैं अपना
पर काम कोई आता नहीं
कोई तो ऐसा हमदर्द होता
जिसको मेरा दर्द होता
कोई तो मुझको समझता
किसी को तो मेरी फिक्र होती
मुझे तो सबका ख्याल होता हैं
कोई तो मेरा ख्याल रखता
मेरा दर्द कोई लेता नहीं
प्यार मुझे कोई देता नहीं 
दोस्त तो बन जाते हैं सभी
साथ मगर कोई देता नहीं

दहेज़ पे दो सब्द

         दहेज़ पे दो सब्द लिखना चाहता हूँ
         ज्यादा नहीं थोड़ा लिखना चाहता हूँ
         क्यों दहेज़ लेना चाहता हूँ
         और क्यों दहेज़ देना चाहता हूँ
         ये खुद से आज पूछना चाहता हूँ
         दहेज़ पे दो सब्द लिखना चाहता हूँ
          क्या जरुरत हैं जो दहेज़ चाहता हूँ
          बस इतना नहीं थोरा और चाहता हूँ
          आखिर क्यों  ये दहेज़ चाहता हूँ
          मुझे जरुरत नहीं जो मैं दहेज़ चाहता हूँ
          दहेज़ चूकी एक समाज की बुराई हैं
          इसलिए न तो मैं लेना चाहता हूँ
          और न भूलकर भी देना चाहता हूँ
          दहेज़ पे दो सब्द लिखना चाहता हूँ
         ज्यादा नहीं थोड़ा लिखना चाहता हूँ
         क्यों दहेज़ लेना चाहता हूँ
         और क्यों दहेज़ देना चाहता हूँ
         ये खुद से आज पूछना चाहता हूँ
         दहेज़ पे दो सब्द लिखना चाहता हूँ

        
          
         
        
        
        
        
     

कुछ ऐसे ही (३ )

मन कुछ नहीं सोच पा रहा हैं
पर दिल हैं जो नहीं मान रहा हैं
कुछ लिखने की इक्छा इस दिल को हैं
पर मन में कोई बात नहीं आ रहा हैं
मगर क्या करू जो दिल में हैं
उसे लिख दे रहा हूँ
शायद इस दिल की बात अच्छी लगे
बस दिल सबकी ख़ुशी चाहता हैं
सिर्फ लोगों के चेहरे की मुस्कान चाहता हैं
इस दिल में किसी के लिए वैर ,ईर्ष्या,घृणा  नहीं हैं
ये तो सबके दिलों का दर्द समझता हैं
इस दिल में सिर्फ प्यार, दया,ममता, त्याग हैं
ये दिल तो बस सबका भला चाहता हैं
मन कुछ नहीं सोच पा रहा हैं
पर दिल हैं जो नहीं मान रहा हैं
कुछ लिखने की इक्छा इस दिल को हैं
पर मन में कोई बात नहीं आ रहा हैं
मगर क्या करू जो दिल में हैं
उसे लिख दे रहा हूँ

Sunday 18 March 2012

कभी किसी से दिल लगाना नहीं

कभी किसी से दिल लगाना नहीं
दिल लगाया तो दिल चुराना नहीं
करते हो प्यार तो घबराना नहीं
किया जो मोहब्बत तो छुपाना नहीं
कभी किसी से यू प्यार जताना नहीं
जताया तो फिर पीछे मुड़ जाना नहीं
करते हो इकरार तो इंकार करना नहीं
मिलाया जो नैन तो पलके गिराना नहीं
हाथ में देके हाथ छोर जाना नहीं
करके वादा यू तोड़ जाना नहीं
कभी किसी से दिल लगाना नहीं
दिल लगाया तो दिल चुराना नहीं 
करते हो प्यार तो घबराना नहीं
किया जो मोहब्बत तो छुपाना नहीं

सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं

सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं
मुख में राम तो बगल में छुरी हैं
सुख में साथ  तो दुःख में दुरी हैं
सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं
हाथ में हाथ हैं जब पास में माल हैं
कोई नहीं साथ हैं जब खाली  हाथ हैं
दिल में सम्मान हैं जब तक  शान हैं
रहता नहीं कोई जब गिरता आन हैं
सगे- संबंधी छोरों अपना-पराया न कोई
मुश्किल घड़ी में न कोई साथ देता हैं 
दोस्त हैं तो वो बस स्वार्थ से जुड़ा हैं
काम उसका निकला तो दोस्ती ये कैसी
कैसे करे यहाँ ऐतबार किसी पे
मुश्किल हैं भरोसा करना किसी पे
संभलकर रहना जीना यहाँ पे
क्यूँकि मुख में राम तो बगल में छुरी हैं
सुख में साथ  तो दुःख में दुरी हैं
सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं




कुछ ऐसे ही (२)

बस ऐसे ही कुछ नहीं
पर कुछ लिख रहा हूँ
मन में कुछ नहीं हैं
पर दिल में जो बात हैं
वो ही लिख रहा हूँ
दिल बहुत कुछ चाहता हैं
एक अच्छा दोस्त चाहता हैं
कोई एक हमसफ़र चाहता हैं
पर कोई ऐसा मिलता नहीं
जिसको ये दिल चाहता हैं
बस ऐसे ही कुछ नहीं
पर कुछ लिख रहा हूँ
मन में कुछ नहीं हैं
पर दिल में जो बात हैं
वो ही लिख रहा हूँ

मैं और मेरा शायराना अंदाज (२ )

1-उनको  न चाहते हुए भी उनकी चाहत का ख्याल आता हैं
गर  यही प्यार हैं तो करने का ख्याल आता हैं
खुद को रोक नहीं पाता हूँ जब भी उनका  ख्याल आता हैं
गर यही प्यार हैं तो करने का ख्याल आता हैं 
2-मैंने उसे बेपनाह चाहा, दिल में बसाया ,साँसों में समाया , जब बात निकली उसके प्यार की तो हर जगह से ये आवाज निकली की वो दगाबाज निकली

Tuesday 13 March 2012

कुछ ऐसे ही (१ )

उम्मीद का दामन छोरों नहीं
मायूश उदास यू रहो नहीं
हिम्मत कभी यू हारो नहीं
हालात से ऐसे घबराओ नहीं
निराश-हताश यू रहो नहीं
खामोश ऐसे यू बैठो नहीं
सिर पे हाथ रख बस सोचो नहीं
कांटों को देख रास्ता बदलो नहीं
बईमानी की नीति अपनाओ नहीं
विश्वास किसी का यू तोरों नहीं
मज़बूरी का रोना बस रोवो नहीं
ना करने का कारन सोचो नहीं
उम्मीद का दामन छोरों नहीं
मायूश उदास यू रहो नहीं